अकारत: शब्दनं द्वितीया विभक्ति |
एकवचन
अहं गन्थं पठामि | = मै किताब पढ़ रहा हु |
सुधाखण्डं स्वीकरोमि | = चाक ले रहा हु |
अहं पाठं पठामि | = अहम् पाठ पढ़ रहा हु |
अहं मंत्र बदामि | = मैं मंत्र बोल रहा हु |
अहं श्लोकम् शृणोमि | = मै गाना सुन रहा हु |
बहुवचन
अहं गन्थान् पठामि | = हम किताबे पढ़ते है |
सुधखाण्डान् स्वीकरोमि | = चाके ले रहा हु |
अहं पाठान् पठामि | = हम पाठे पढ़ते है |
अहं मंत्रान् बदामि | = हम मंत्रे बोल रहे है |
अहं श्लोकान् शृणोमि | = हम गाने सुनते है |
अभ्यास
वयं सिंहान् पश्यामः | = हमलोग शेरो को देखे है |
वयं भल्लुकान् पश्यामः | = हमलोग भालूओ को देखे है |
वयं व्याघ्रान् पश्यामः | = हमलोग बाघो को देखे है |
वयं सर्पान् पश्यामः | = हमलोग साँपे को देखे है |
वयं वानरान् पश्यामः | = हमलोग बंदरो को देखे है |
वयं गजान् पश्यामः | = हमलोग हाथीये को देखे है |
वयं गर्दभान् पश्यामः | = हमलोग गधो को देखे है |
द्वितीया विभक्ति |
अहं मोदकं खादामि | = मै लड्डु खाया हु |
अहं चाकलेह ददामि | = मै चॉकलेट खाया हु |
भागतः देवां नमयति | = भगत देव को प्रनाम् करता है |
अहं श्लोकम् शृणोमि | = मै गाना सुन रहा हु |
अहं सुधखण्ड किन्यामि | = मै चाक किना हु |
अभ्यास
वयं शुकान् पलयामः | = हम सुगे पाल रहे है |
वयं मयूरान् पलयामः | = हम मोर पाल रहे है |
वयं मीनान् पलयामः | = हम एक मछली पाल रहे है |
वयं वृषभान् पलयामः | = हम बैल पाल रहे है |
वयं कपोतान् पलयामः | = हम कबूतर पाल रहे है |
द्वितीया विभक्ति |
अहं धोनि मुद्रिका: स्थाप्यामि | = मै स्पिकर रख रहा हु |
सामुद्रिकाः नयतु | = मल्लाह का काम का लेना |
अहं वार्ताः पठामि | = मै समाचार पडता हु |
अहं वार्ताः बदामि | = मै समाचार बोलता हु |
अहं धोनि मुद्रिका: पश्यामि | = मै स्पिकर देख रहा हु |
मालाः = माला
पत्रिकाः = पत्रिका
लताः = लता
द्वितीया विभक्ति द्विवचन |
एकवचन द्विवचन बहुवचन
वार्ता.= समाचार वार्ताः = समाचारे वार्ताे = समाचारो
वाटिकां = वन वाटिका: = वने वाटिके = वनो
पेटिकाम् = डिब्बा पेटिका: = डिब्बे पेटिके = डिब्बो
कपाटिकाम् = अलमारी कपाटिका: = अलमारीये कपाटिके = अलमारीयो
अहं प्रभाते उत्तिष्ठामि
अहं प्रभाते उत्तिष्ठामि
मातापितरौ प्रणमामि ।
देवान् भक्तवरेण्यान् नत्वा
पठने मतिं विधास्यामि ॥
विना विलम्बं शालां गच्छन्
पाठ्यांशान् अवगच्छामि ।
सर्वान् विषयान् सम्यगधीत्य
बुद्धिविशदतां प्राप्नोमि ॥
शिष्टाचारान् साधुविचारान्
वृद्धिकरान् आकलयामि ।
विद्याभ्यासाचारविचारैः
सर्वश्रेष्ठतां विन्दामि ।
- जनार्दन हेगडे
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